वन्दना देखने में ऐसे ही लगती है |
एक सन्डे को क्या हुआ की सुचित्रा की तबियत ठीक नहीं थी तो सुचित्रा बोली '' आज आप अकेले चले जाओ और सब्जी ले आओ,मेरी तबियत टीक नहीं है'' तब मैंने कहा ''टीक है मैं चला जाऊँगा पर वन्दना को नहीं ले जाऊँगा'' तब सुचित्रा बोली ''क्यों वंदना आपके ऊपर बैठ कर जाएगी या उसके जाने से पेट्रोल ज्यादा लगेगा'' तब मैंने कहा '' तुम्हारे साथ उसका जाना अच्छा लगता है पर मेरे साथ जाएगी तो लोग क्या कहेंगे'' तो सुचित्रा बोली '' जिस दिन लोगो को सुनने की परवाह किया उस दिन जीना दूभर हो जाएगा और आज की तो बात है'' तब मैंने कहा ''ठीक है'' जबकि मैं नौटंकी करने के लिए ये सब कह रहा था ! मैं जल्दी जल्दी तैयार हो रहा था की इतने में वंदना का फोन आया ओ आने के लिए पूछ रही थी तो सुचित्रा ने कह दिया तू तैयार रह आ रही हु ! और मैं जल्दी से तैयार होकर वन्दना के घर के सामने पहुंच गया उस समय सुबह के 8 बजकर 15 मिनट हो रहे थे फरवरी का महीना था नार्मल हलकी हलकी ठंडी थी मैं जैसे ही पहुंचा वंदना कार देखकर छत से जल्दी जल्दी सीढ़ी उत्तर रही थी तब मैं जल्दी से वंदना पहुंचा और बोला ''अभी तक तैयार नहीं हुई क्या'' तो वंदना बोली ''आप कैसे ? दीदी कहाँ है ? '' तब मैंने वंदना को बांहों में भरते हुए किस करते हुए बोला ''आज सूचित्रा की तबियत टीक नहीं अपुन दोनों ही चलेंगे'' तो वंदना मुझे किस किया और बोली ''ओके'' और फिर जल्दी से कमरे के
अंदर घुस गई और कपडे बदलने लगी तो मैं भी पहुंच गया कमरे के सामने पर वंदना ने अंदर से लाक किया हुआ था दरवाजा ! जब मैंने दरवाजा खटखटाया तो बोली '' रुकिए कपडे पहन लू फिर आती हु'' तब मैंने कहा ''दरवाजा तो खोलो'' तो बोली '' नहीं '' मैंने कई बार कहा पर नहीं मानी और जल्दी ही कमरे से साड़ी पहन कर निकली जबकि हमेसा ही सलवार सूट पहन कर जाती थी सब्जी मंडी ! साड़ी में देखकर मैंने बोला ''वाउ क्या मस्त लगती हो साड़ी ,में'' तो कुछ नहीं बोली बस मुस्कुरा कर रह गई और फिर बोली ''चलिए'' और मैं जल्दी जल्दी सीढ़ी उत्तर कर कर में आ गया कुछ ही मिनट में वन्दना भी घर में लाक लगाकर आई और रोज की तरह कार की पीछे वाला दरवाजा खोला तो मैंने कहा ''आगे आ जाओ न'' तो वन्दना ने पीछे का दरवाजा बंद करके आगे की सीट में बैठ गई और दोनों कार से चल दिए और रास्ते में मैंने वंदना से अपनी मंसा को बताया तो वंदना बोली '' छिः कितने गंदे हो आप कार में भला कैसे बनेगा'' तब मैंने वंदना को पूरा प्लान बताया तो वंदना कुछ नहीं बोली !
वन्दना की चूची ऐसी है मस्त टाइट है |
झाड़ियों के ओलटी मेन रोड से करीब 1 KM दुरी पर कार को खड़ा कर दिया और वन्दना को बोला चलो पीछे वाली सीट में तो वंदना बिना न नुकुर किये पीछे वाली सीट में आ गई और मैं भी वन्दना के पास बैठ गया (कार में काली रंग की फिल्म लगी है इस लिए बाहर कुछ दिखाई नहीं देता) और वन्दना को किस करने लगा,किस करते करते वन्दना की चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा ! करीब 3 मिनट तक तो वन्दना सामान्य रही पर मेरे बार बार किस करने और चूची दबाने से बंदना भी उत्तेजित होने लगी तो मैंने वंदना के ब्लाउज और ब्रा के हुक खोल दिया और चूचियों को आजाद कर दिया कपडे के बंधन से और फिर चुचिओं को चूसने लगा हलके हलके हाथो से दबाने लगा वन्दना अब जल्दी ही उत्तेजित हो गई ! वंदना चूची बहुत बड़ी नहीं थी और छोटी भी नहीं थी पर थी एकदम से गोल मटोल बिना लटके हुए ! वंदना की चूचियों की निप्पल टाइट पड़ गई तो मैं मन को आगे
वंदना की टाँगो को कुछ इस तरह से फैला कर चूत को चाटने लगा |
वंदना को इस तरह से घोड़ी बनाकर चोदा |
वंदना को सीट में लिटा कर इस तरह से चुदाई किया |
तो वंदना को कई बार उसके घर में ही चुदाई किया ! अभी भी नियमित रूप से वंदना की चुदाई करता हु !
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